अहिल्या माँ की कथा और मोक्ष प्राप्ति
कुछ वर्ष पहले यहाँ रहते थे गौतम ऋषि
उनकी भार्या अहिल्या सदा देती थी उन्हें ख़ुशी
अहिल्या, सौन्दर्य की देवी, करती थी सोलह श्रृंगार
उनकी अनुपम सुन्दरता थी ऋषि गौतम को उपहार !!
एक प्रातः ऋषि गए स्नान करने जब गंगा की ओर
अपनी पतिव्रता भार्या को कुटिया में अकेला छोड़ !!
तब वायु मार्ग से गुज़र रहे थे इन्द्र भगवान
और अति सुन्दर अहिल्या देवी पर गया ध्यान !!
सुंदर देवी देख हो गए उन पर मुग्ध
और उन्हें पाने का वह करने लगे कुछ युक्त !!
इन्द्र देव ने धारण करा ऋषि गौतम का रूप
क्युकी उन्हें था भा गया अहिल्या जी का स्वरुप !!
जैसे ही सूरज को ढकते बादल छा गए
वैसे ही इन्द्र देव गौतम ऋषि का रूप धर आश्रम में आ गए !!
आते ही वह अहिल्या देवी से करने लगे बात
और प्रकृति की छटा निहारने लगे वह बैठ एक साथ !!
अहिल्या माँ बैठी थी फैलाये अपने केश
और तभी हुआ ऋषि गौतम का आश्रम में प्रवेश !!
जब ऋषि ने अहिल्या जी को किसी और संग पाया
गुस्से से भड़के और बोले ' दुष्ट कौन है तू और यहाँ कैसे आया ' !!
दो - दो ऋषि स्वामी देख कर अहिल्या को अनिष्ट ने सताया
आश्चर्ये में वह पड़ गयी , कौन है अपना, कौन पराया !!
क्षमा मांगने के लिए इन्द्र ने अपना रूप किया धारण
पर ऋषि गौतम ने दे दिया श्राप बिना सुने ही कारण !!
माँ अहिल्या को श्राप दिया, बन जाए वह पाषाण
शिला बन गयी देवी अहिल्या, हर तरफ आ गया तूफ़ान !!
जब से अहिल्या माँ थी शिला बन गयी
तब से यहाँ की भूमि थी सूनी हो गयी !!
इस कथा का विश्वामित्र ने श्रवण कराया
और अहिल्या माँ का पाषाण रूप राम को था दिखाया !!
ऋषि बोले, जाओ राम, शिला को श्री चरण अपने लगाओ
और देवी अहिल्या को कटु श्राप से तुंरत मुक्त कराओ !!
सुन यह बात श्री राम ने अपना कदम बढाया
और शिला रूप अहिल्या पर अपना चरण लगाया !!
ऐसा करते ही श्राप मुक्त हुई अहिल्या माता
मानने लगी श्री राम को वह अपना भाग्य विधाता !!
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