Wednesday, November 4, 2009

गुरुकुल - भाग - ३ - रामायण

भाग - ३ - गुरुकुल

हंसते - खेलते बीते कुछ वर्ष
अयोध्या में हर तरफ छाया था हर्ष !!

पर एक दिन, जब सब दरबार दिए गए खोल
तब ऋषि ने श्रीमुख ये सब दिया बोल !!

महारानियों, बड़े हो गए है चारो राजकुमार
बस अब एक दिन और लुटायीए इन पर अपना प्यार !!

क्युकी फिर जाना है इनको गंगा पार
जहा गुरुकुल को है इनका इंतज़ार !!

यह सुन तीनो रानिया गयी वही थम
कहने लगी ऋषि से , मत दीजिये हमें ऐसा गम !!

ऋषि बोले यह तो है बड़ी पुरानी रीति
कौशल्या माँ बोली , हाय ! यह कैसी है रीति !!

ऋषि ने कहा गुरुकुल से मिलता है सबको ज्ञान
ज्ञान पाकर ही बनते है साधारण मनुष्य विद्वान !!

गुरुकुल में होती है एक गुरुमाता
जिनका बच्चो से होता है माँ का ही नाता !!

दिव्य और अलौकिक होती है वहां की ज़मी
नहीं होती वहां कभी किसी चीज़ व् प्यार की कमी !!

गुरुकुल में बिताने है इन्हें बस कुछ ही साल
ताकि वेद ज्ञान पा, खुद को पहचान जाए ये बाल !!

मुझे इन्हें गुरुकुल ले जाने की दे इजाज़त
अन्यथा, मैं अपने कर्तव्य से हो जाऊंगा पराजत !!

रनिया बोली, हम नहीं करना चाहते आपका अपमान
परन्तु हमारे ये पुत्र तो हैं हमारी जान !!

हम अपने प्राणों को नहीं दूर भेजना चाहते
क्यों न आप इन्हें शिक्षा देने महल में ही आ जाते !!

ऋषि बोले मेरा महल में न पढाने का है एक कारण
यह नहीं है धर्म, इसलिए ताकि मैं करू धरम पालन !!

मुझे इन्हें अपने संग ले जाना है
और अपना धर्म निभाना है !!

महारानियों ! आप की बात होती है हमेशा सही
तो कहिये, मैं अपना धर्म निभाऊ या नहीं !!

महरनिया बोली, गुरुवर, अब हमारे पुत्र है आपकी संपत्ति
परन्तु केवल कुछ दिन दें हमें उन्हें यहाँ रखने की अनुमति !!

ऋषिवर धर्म-वश नहीं माने उनकी बात
तीनो मताए सोचे, हाय ! कैसे कटेगी यह रात !!

ऋषिवर वशिष्ठ ने अपनी बात जब दशरथ को बताई
बोले राजा, हाय ! यह कैसी घडी है आई ?

मुझे प्रिय हैं मेरे ये पुत्र सारे
यह चारो हैं दुनिया के सबसे न्यारे !!

जो पुत्र है मुझे प्राणों से भी प्यारे
अब दूर हो जायेंगे मेरी आँखों के तारे !!

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