भाग - ८ , विश्वामित्र अयोध्या में
परन्तु फिर केवल कुछ ही दिनों में दुःख छा गए
जैसे ही ऋषि विश्वामित्र अयोध्या आ गए
राजा दशरथ पुत्रो के साथ हंस गा रहे थे
तब जब ऋषि विश्वामित्र अयोध्या में आ रहे थे !!
माँ कैकयी की गोद में लेटे थे राम
महसूस कर रहे थे एक बार फिर स्वर्ग सा आराम !!
कुछ ही देर में महल में ऋषि जी आये
बोले कष्ट कर सुमंत जी, जरा दशरथ जी को बुलाये !!
सुमंत ने कहा दशरथ से , आपको ऋषिवर ने है बुलाया
दशरथ बोले तुम जाओ मैं अभी आया !!
जल का लोटा हाथ ले, राजा दशरथ पधारे राज भवन
जहा विश्वामित्र जी के आगमन से वातावरण हुआ था पावन !!
राजा दशरथ जभी धो रहे थे ऋषिवर के शुभ चरण
तभी उन्हें एक दिव्य कथा का होने लगा स्मरण !!
कथा की कैसे विश्वामित्र बन गए थे संत
और कैसे उनके मोह का हुआ था अंत !!
दशरथ बोले आपकी आज्ञा हो तो पुत्रो को भी बुलाऊ
और अपनी दिव्य वाणी का प्रेम व् आशीर्वाद उन्हें दिलवाऊ !!
ऋषिवर की आज्ञा पा चारो कुमार वहा आये
सबके प्रिय राम को देख ऋषिवर मन ही मन मुस्काए
फिर राजा दशरथ ने चारो के परिचय कराये
राम के स्वरुप में ऋषि को विष्णु नज़र आये !!
फिर राजा दशरथ से प्रसन्नता ज़ाहिर करी एक
की उनका पुत्र राम है तेजस्वी और नेक !!
और अपना दुखडा कह सुनाया
अपने अयोध्या आने का कारण बतलाया !!
जैसे ही हम दिव्य यज्ञ में आहुति डालते है
वैसे ही सुबाहु और मारीच राक्षस हमें ललकारते है !!
आकार वह इस यज्ञ में विघ्न हमेशा डालते है
इस कारण सब ऋषि यज्ञ सामग्री को सँभालते है !!
हम चाहते है की वह दोनों राक्षस न हमें तडपाये
तो क्या हम अपने यज्ञ की रक्षा के लिए राम को ले जाए !!
राजा दशरथ की सहर्ष आज्ञा पा राम - लक्ष्मण हुऐ तैयार
चल पड़े संग ऋषि विश्वामित्र के, छोड़ अपना परिवार !!
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